मंगलवार, 3 जुलाई 2012

बारिश तुम चली आओ

सावन के महीने है आ गये कि तुम चली आओ
अरमान है प्यासे धरती के तुम चली आओ
सवारने लोगो की जिन्दगी को तुम चली आओ
छाई है निराशा सब पे कि तुम चली आओ
उदास है जग वाले कि तुम चली आओ
छम छम मोर नाचेंगे कि तुम चली आओ
कोयल गुनगुनायेगी कि तुम चली आओ
पपीहा प्यास बुझाएगा कि तुम चली आओ
सराबोर होंगे किसान कि तुम चली आओ
लहलहाएंगे अपने खेत कि तुम चली आओ
बड़ी शिद्दत से है तुम्हारा इंतज़ार कि तुम चली आओ
इस जीवन का अस्तित्व के लिए तुम चली आओ
बारिश, तुम चली आओ !!
Kundan

1 comments:

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

keep it up...nice poetry....with beautiful feelings & words :)

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