बुधवार, 22 अगस्त 2012

ये शहर है कैसा ??

ये शहर है कैसा शर्मा, जिसमे तू अपना किस्मत तराशने आया है ! 
यहाँ तो देखी है मैंने पत्थरो का हुकुमुत और तू फूलो सा इरादा मन में संजोया है !
इस मतलबपरस्त जहां में मतलब के है लोग और तू गाँव सा दिल लेकर आया है ! 

यहाँ तो पग पग पे दुश्मन मिलेंगे तुम्हे और तू यारो की यारी निभा कर आया है ! 
चलते चलते हजारों दोस्त बन जायेंगे यहाँ पर बचपन वाली पक्की दोस्ती तू कहाँ से लायेगा ?
खुदगर्ज है इन्सान यहाँ के, तू त्याग और निस्वार्थ कि भावना कहा से लायेगा ? 

फिर भी तुम्हे जीना है यहां… 
तो हो जाओ तैयार शर्मा इस शहरी जिन्दगी जीने को, लगा एक तेज दौर इस रेस को जितने को !! 

(दिल्ली महानगर की ये भाग-दौर भरी शहरी जिन्दगी को मैंने अपने टूटे-फूटे शब्दों में लिखा हैं...)